पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥ श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥ वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥ पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥ अंग गौर शिर गंग बहाये। https://jaibhole.co.in/home/Shree-Shiv-Chalisa